धर्म ने बर्बाद किया भारत को
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, इस देश में हज़ारों सालों से अध्यात्म की परम्परा रही है, फिर भी हज़ारों सालों से यह देश लगातार अनेक क्षुद्र चुनौतियों और विषमताओं से जूझता रहा है, क्या कारण है?
आचार्य प्रशांत: आप में से कौन-कौन लोग अपने घर की नियमित रूप से सफ़ाई करते हैं?
(नियमित रूप से सफ़ाई करने वाले श्रोता अपना हाँथ उठाते हैं)
(कुछ श्रोतगण अपना हाथ नहीं उठाते हैं) इतने लोग हैं जो नहीं करते? चलिए जो लोग करते हैं, उन्हीं का उदाहरण लेकर आगे बढ़ते हैं। कोई आपसे कहे कि इतनी सफ़ाई करते हो फिर भी तुम्हारे घर में कचरा क्यों आ जाता है, तो क्या जवाब देंगे? क्योंकि प्रकृति का काम है कचरा फैलाना। आप अपना घर ताला बंद करके चले जाइए। घर में कोई है अब? तो इंसान तो अब है नहीं कि कोई करतूत करेगा। घर में आप कोई अपना पालतू पशु-पक्षी भी मत छोड़िए कि इसने गंदा कर दिया होगा, और दो महीने बाद लौटिए, घर कैसा मिलता है? यहाँ तक कि जो बर्तन आप रसोई में धो कर रख कर गए होते हैं, आप उनका इस्तेमाल अगर एक महीने बाद करना चाहें, तो क्या कर सकते हैं? उनको दोबारा धोना पड़ता है, है ना? ये गंदा किसने कर दिया? प्रकृति ने। प्रकृति का काम है धूल-धूसरित कर देना।
अब प्रश्नकर्ता पूछ रहे हैं कि अध्यात्म का फ़ायदा क्या, धर्म का फ़ायदा क्या — इतने दिनों से अध्यात्म है, धर्म है, फिर भी इतनी गंदगी है। भारत के संदर्भ में पूछा है या विश्व के?
प्र: इस देश के।