धर्म क्या है?
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पशु कौन?
जिसकी चेतना देह-केंद्रित हो,
जो शारीरिक सुख को ही सर्वोपरि मानता हो,
और जिसमें न ध्यान हो न करुणा।
धर्म ही मनुष्य को पशु से अलग बनाता है।
धर्म है जीवन के सत्य की खोज,
और भय व बंधन से मुक्ति।
धर्म का आज जितना तिरस्कार कभी न था।
मनुष्य आज जितनी वेदना में कभी न था।
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