धर्मग्रंथों की उपेक्षा धर्म को मिटाने की तैयारी है

हम जैसे जी रहे हैं, वैसे जी नहीं पाएँगे अगर हम चले गए उपनिषदों या गीताओं के पास। साथ ही साथ हममें इतना दम नहीं है कि कह सकें कि हम पाशविक हैं और हमें पशु जैसा ही भौतिक जीवन जीना है।

काल का कुछ ऐसा दुर्योग बैठा है, समय ने कुछ ऐसी करवट ली है, एक ऐसे मुकाम पर पहुँच गया है, जहाँ ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई दंड नहीं मिलेगा, कोई प्रतिफल नहीं मिलेगा अगर आप पूरे तरीके से एक सत्यहीन, मुक्तिहीन, भोग केंद्रित और सुख केंद्रित जीवन बिता रहे होंगे। तो हर आदमी की प्रकट या अप्रकट कामना यही है कि वो भोगे।

आदमी जानवर से हज़ारों-अरबों गुना ज़्यादा भोगना चाहता है लेकिन कर वही रहा है जो जानवर करता है, आयाम वही है। आज का जो पूरा जीवन है, जो हमारी पूरी व्यवस्था है, संस्कृति और सभ्यता है, वो सिर्फ और सिर्फ सुख और भोग केंद्रित है।

असली अध्यात्म हमारे लिए खतरनाक है क्योंकि असली अध्यात्म मैंने शुरू में ही कहा हमें वैसे जीने नहीं देगा जानवर की तरह जैसे हम जी रहे हैं। तो ये दोनों-तीनों बातें मिल कर के कुल नतीजा ये दे रही हैं कि एक नए तरीके के अध्यात्म का जन्म हो रहा है। आज का युग विशेष है बहुत, पिछले कुछ पचास सालों में एक बिल्कुल ही नया अध्यात्म खड़ा हो रहा है, एक नए धर्म की स्थापना हो रही है, जो बड़ा चोर धर्म है। उस धर्म के पास हेसियत नहीं है ये बोल पाने की मैं एक अलग और नया धर्म हूँ तो वो दिखाता यही है कि मैं पुराना धर्म हूँ। अगर हम हिंदू धर्म या सनातन धर्म की बात करें, तो कोई नहीं मिलेगा आज के समय में जो कह रहा हो कि मैं एक नए धर्म की…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org