धर्मग्रंथों की उपेक्षा धर्म को मिटाने की तैयारी है

प्रश्नकर्ता: आध्यात्मिक और धार्मिक ग्रंथों को लेकर वर्तमान समय में एक उपेक्षा का भाव है बल्कि कहीं-कहीं तो घृणा का। लोग कहने लग गए हैं ज्ञान तो हम अपने अनुभव से ही ले लेंगे। समझ तो हम अपने जीवन से यही सींख लेंगे। किसी ग्रंथ किसी शास्त्र की हमें कोई ज़रूरत नहीं है। बल्कि कई लोगों ने तो ज़ोर देकर बोलना शुरू कर दिया है कि किसी भी तरह की आध्यात्मिक पुस्तक पढ़ना आंतरिक प्रगति में बाधा ही बन जाती है।