दो सूत्र -अपने प्रति ईमानदारी, अपने प्रति हल्कापन

आचार्य प्रशांत: क्या चर्चा कर रहे थे आप लोग आरम्भ में?

प्रश्नकर्ता: मज़बूती और कमज़ोरी — ये द्वैत के दो सिरे हैं और किसी भी एक सिरे पर बैठ कर इन दोनों को समझा नहीं जा सकता है। सर ने ये बात बताई थी, यहाँ से शुरुआत होती है।

फिर मोहित जी (एक श्रोता) अपने जीवन के बारे में कुछ बता रहे थे कि कैसे मज़बूती और कमज़ोरी द्वैत के दो सिरे हैं, उसी तरह से चलते रहना और फिर फिसल जाना और ये जो पूरा इसका चक्रवात है, यह भी द्वैत का ही एक अंग है, तो इससे कैसे बाहर निकला जा सकता है। तो मोहित जी बता रहे थे कि जो इसमें है वो इससे कभी भी बाहर नहीं निकल सकता, अगर मैंने ठीक समझा था।

आचार्य: कहते हैं कि सांड लाल रंग के पीछे भागता है, उत्तेजित हो जाता है। कहानी ही है क्योंकि वस्तुतः वो रंग देख ही नहीं सकता पर कहानी पर ही चलते हैं। तुमने लाल रंग की कमीज़ पहन रखी है और वो उत्तेजित हो रहा है, क्रोध से उफना रहा है। लम्बा-चौड़ा, दौड़ पड़ता है और तुमे जानते हो कि तुम्हारी कमीज़ के लाल रंग के पीछे है, तुम क्या करोगे?

प्र१: कमीज़ उतार देंगे।

आचार्य: कमीज़ उतार दोगे न? यही संसार का और तुम्हारा रिश्ता है। देखो कि संसार किसके पीछे है? देखो कि दुःख किसे है? देखो कि डर किसे है? जिसे है, उसे रहेगा। जब तक लाल रंग है, तब तक सांड रहेगा और वो उसका पीछा करता ही रहेगा। हाँ, तुम्हारे हाथ में ये है कि तुम इस पूरे चक्र से बाहर निकल जाओ। वो खेल चलता रहेगा। अब तुम दूर खड़े हो गए हो, कमीज़ उतार दी तुमने और सांड उस कमीज़ को फाड़ रहा है, उसके चीथड़े कर रहा है, नोंच रहा है। वहाँ जो चलना है चल रहा है, बस तुम उससे?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org