देहभाव के कारण ही डर और दबाव झेलते हो

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मैं तो सच की राह पर ही चलना चाहता हूँ मेरे हिसाब से लेकिन परिवार वाले कहते हैं तुम ज़िम्मेदारी निभाओ मतलब जो भी सामाजिक दायित्व है उनको पूरा करो, फैमिली बनाओ।

आचार्य प्रशांत: उनको बोलो फिर तुम काहे के लिए हो? हम ही सब करेंगे कि तुम भी कुछ करोगे?

प्र: वह कहते हैं हमने अपनी ज़िम्मेदारी निभाई अब तुम्हें भी निभानी है।

आचार्य: और निभाओ! अगर ज़िम्मेदारी इतनी ही अच्छी चीज़ है तो और निभाओ न! कुछ अगर इतना बढ़िया लगा है तुम्हें तो रुक क्यों रहे हो? उसे और करो! अगर ज़िम्मेदारी प्यारी चीज़ है, तुमने दो निभाई, तो तीन निभाओ, चार निभाओ! हमें इतना प्यार है तुमसे कि हम अपनी ज़िम्मेदारी भी तुम्हें देते हैं। ये उपनिषद रखा है (सामने इशारा करते हुए) इसकी सुननी है या किसी की भी सुननी है? किसी की भी सुननी है, तो फिर तो फ़ालतू ही थे ऋषि-मुनि जो तुम्हारे लिए इतनी बातें कह गए। फिर तो उन्हें एक बात कह देनी थी- “मम्मी से पूछ लेना!” फिर तो व्यर्थ ही गीताएँ हैं और उपनिषद हैं और कबीर साहब हैं, गुरु नानक हैं और अष्टावक्र हैं। फिर तो इन्हें होना ही नहीं चाहिए था। एक ही सूत्र होना चाहिए था- मम्मा बताओ!

वहाँ वो (सामने रखी उपनिषद की ओर ईशारा करते हुए) बताते-बताते थके जा रहे हैं, असली बाप कौन है? सारी बातें ही ‘परमपिता’ की हैं और तुम जब देखो तब माँ-बापों की कहानी शुरू कर देते हो? जब माँ-बाप तुम्हें पता ही हैं तो परमपिता का क्या करोगे?

अभी यहाँ बैठे हो सामने दुर्बल हूँ, उलझन में हूँ, दुविधा में हूँ और जवान हो कल को तुम भी एक बच्चा पैदा कर दो और उससे बोलो “नहीं! नहीं! नहीं! मैं अंतर्यामी हूँ, सिद्ध हूँ, कूटस्थ हूँ, मैं जो बोल दूँ वह ब्रह्म वाक्य है!” फिर तुम भूल जाओगे कि तुम कौन हो। तुम हो कौन? दुर्बल, नासमझ, आम इंसान। लेकिन हर दुर्बल, नासमझ, आम इंसान अपने बच्चे के सामने क्या बन जाता है? परमपिता और भगवान! कि माँ-बाप भगवान बराबर होते हैं हमारी ही सुनना! दुनिया में और किसी के सामने वो भगवान हो न हों, दुनिया में और कोई उनकी सुने न सुने, एक तो मिल ही गया है बकरा कि आजा बेटा चरणस्पर्श कर। जिधर को ठेले उधर को चल दे। तुम भी यही करो! एकाध दो साल में तुम भी बाप बनोगे और अभी यहाँ बैठे हो घुग्गु की तरह और उसके सामने क्या हो जाओगे? कि “हम हीं ब्रह्म हैं अब जो बोल रहे हैं हम वही करना तुम!”

यही तुम्हारे पिता ने किया और परपिता ने किया, यही तुम करोगे, फिर यही तुम्हारा लड़का करेगा, चक्र चलता रहेगा!

प्र: कुछ लोग तो यह भी बोलते हैं जब माँ-बाप हैं तो गुरु की क्या ज़रूरत है?

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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