देशप्रेम से बड़ा कुछ और है

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी नमस्ते। आचार्य जी, एक परिचित हैं मेरे, उनसे कुछ चर्चा हो रही थी तो उस चर्चा के दौरान एक बात सामने आयी, तो उन्होंने कहा कि ये सवाल आचार्य जी से अगर पूछ सकते हैं तो सामने रखिएगा। चर्चा वो इस बात पर थी कि वो कह रहे थे कि भारत आज आर्थिक और सामरिक-दृष्टि से बहुत मज़बूत है, हम विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और चौथी सबसे बड़ी सेना रखते हैं। तो फिर आप क्यों कहते हैं कि भारत-राष्ट्र को आज बहुत ख़तरा है? थोड़ा समझाएँगे इस पर?

आचार्य प्रशांत: नहीं, जो पूछा है उसी में उत्तर बैठा हुआ है न! सेना ‘देश’ के पास है, अर्थव्यवस्था ‘देश’ की बढ़ी हुई है; देश एक राजनैतिक इकाई होता है, देश और राष्ट्र एक नहीं होते।

समझ रहे हो?

अगर साधारण भाषा में समझो तो, राष्ट्र आप हों इसके लिए आपको एक साझा आधार चाहिए, एक सिद्धांत चाहिए, जो आपको आपस में जोड़े हुए है। और देश बना रहे, बचा रहे, इसके लिए आपको सिर्फ़ राजनैतिक एकता चाहिए।

मैं पहले भी कह चुका हूँ कि भारत-देश का आधार भारत-राष्ट्र है; और ये दोनों बहुत अलग-अलग हैं। भारत ‘राष्ट्र’ तब भी था जब भारत ‘देश’ नहीं था। १९४७ से पहले क्या भारत-देश वैसी ही राजनैतिक इकाई था जैसा उसे आज देख रहे हो? और पीछे चले जाओ, १७५७ से पहले क्या भारत-देश राजनैतिक तौर पर वैसा ही था जैसा आज देख रहे हो? तो देश की परिभाषा, देश की सीमा तो लगातार बदलती रही है पिछले दो-हज़ार, चार-हज़ार सालों में, लेकिन भारत-राष्ट्र क़ायम रहा है, भारत-राष्ट्र यथावत रहा है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org