देखो संगति का असर
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम। कुछ चीज़ें हमें साफ़-साफ़ पता चलती हैं कि हम ग़लत कर रहे हैं। लेकिन कुछ ऐसी चीज़ें होती हैं जो व्यर्थ होती हैं लेकिन जब हम उस काम में मशगूल रहते हैं तो पता नहीं चलता कि व्यर्थ है, जैसे हम हँसी-मज़ाक और गपशप करते रहते हैं। तो हमें बाद में पता चलता है कि समय गँवा दिया या कुछ ऐसे काम में लगे रहे जो मानसिक और आध्यात्मिक रूप से हमें कमज़ोर करती है।
तो इन चीज़ों को उसी समय कैसे जानें कि व्यर्थ हैं?
ये बातें जो साधारण लगती हैं, लगता है कि इनमें कोई नुक़सान तो है नहीं, ये बातें हमें नुक़सानदेह कम इसीलिए लगती हैं क्योंकि हम नुक़सान को भी बड़े स्थूल, ग्रोस…