दूसरों से प्रभावित क्यों हो जाता हूँ?
जिसको तुम कहते हो कि मेरे अपने विचार दब जाते हैं, पीछे छूट जाते हैं, दूसरों का प्रभाव हावी हो जाता है, वो विचार क्या पक्का है तुम्हें कि तुम्हारे ही थे?
ध्यान से देखो कहीं ऐसा तो नहीं कि वो भी दूसरों का ही प्रभाव हों, क्योंकि जो तुम्हारा अपना होगा वो कैसे किसी और के काटे कट जाएगा? वो तो आच्छादित हो ही नहीं सकता, उसको दबा के रखने का कोई तरीका ही नहीं है। वो तो वास्तविक होगा, पूरी तरह से अपना।
समस्या ये बिलकुल भी नहीं है कि दूसरों की बात सुनने के कारण, दूसरों के प्रभाव में आ जाने के कारण तुम अपने मन की नहीं कर पाते।
ये समस्या है ही नहीं।
क्योंकि जिसको तुम अपना मन कह रहे हो वो भी घूम-फिर कर है दूसरों का ही। हम जिसको अपना मन कहते हैं, उसको ध्यान से देखो, वो हमारा है ही कहाँ?
मन में जो कुछ भरा हुआ है उसी का नाम है — मन। मन और तो कुछ होता ही नहीं। मन में जो सामग्री भरी हुई है उसी का नाम मन है। वो जो पूरी सामग्री मन में भरी हुई है, वो पूरा मसाला, वो मसाला कहाँ से आया है? वो तुमने खुद पैदा किया है? तुम्हारा अपना उत्पाद है? टी.वी. में देख लिया है, अखबारों में पढ़ लिया है, घरवालों ने बता दिया है, शिक्षा ने बता दिया है, दोस्तों-यारों से सुन लिया है। मन में जो कुछ भरा हुआ है वो आया कहाँ से है? मन ने खुद तो नहीं पैदा किया।
वो कहाँ से आया है?
वो बाहर से आया है और आकर तुम्हारे मन में बैठ गया है। कोई कारण है तुम्हारे पास उसको अपना बोलने का? पर…