दूसरों पर निर्भरता घटाने का उपाय

प्रश्न: जब मैं किसी से जुड़ जाती हूँ, तो उसके ही ख़यालों से मन भर जाता है। और अगर सामने वाला मुझपर ध्यान न दे, तो बुरा लगता है। मैं खुद में मज़बूत कैसे बनूँ, कि दूसरे पर आश्रित न रहना पड़े?

आचार्य प्रशांत:

इससे पहले कि तुम्हें किसी दूसरे के सहारा न लेना पड़े, तुम्हें जो सही है, उसका सहारा लेना पड़ेगा।

अभी तुम्हारी स्थिति क्या है? अभी तुम्हारी स्थिति ये है कि तुम्हें सहारों की ज़रुरत पड़ती है। जिसे सहारों की ज़रुरत पड़ती हो, वो दुर्बल हुआ, नासमझ हुआ। और जो नासमझ है, वो अपने लिए सहारे भी कैसे चुनेगा?

प्रश्नकर्ता: अपने जैसे नासमझ।

आचार्य प्रशांत: सब गड़बड़ सहारे। तो ये तो दो तरफ़ा चोट पड़ गई न। पहली बात तो ये कि तुम्हें किसी के सहारे की ज़रुरत पड़ी, बल्कि बहुतों के सहारे की ज़रुरत पड़ी — ये पहली गड़बड़। और दूसरी गड़बड़ ये कि तुमने ग़लत लोगों का सहारा ले लिया। पहली बात तो ये कि तुमने भीख माँगी। बुरी बात। और दूसरी ग़लत बात ये कि तुमने भिखारियों से भीख माँगी। मिलेगा भी तो क्या? तुम तो दोतरफ़ा चोट खा रही हो।

पहली बात तो ये कि हमें किसी का सहारा लेना पड़ता है। और दूसरी बात ये कि हम ऐसों का सहारा ले रहे हैं जो हमसे भी गए गुज़रे हैं। तो कौन-सा सहारा मिल जाएगा भई? तो इसीलिए तुम्हें दो चरणों में अपनी स्थिति से बाहर आना पड़ेगा। दो चरण कौन-से हैं, समझना।

पहला चरण वहीं से तो रखोगे न जहाँ खड़े हो। और यही तुमने अपनी हालत बना रखी है कि तुम्हें सहारों की ज़रुरत पड़ती है। अपनी नज़र…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org