दूसरों के सम्मान से पहले अपना सम्मान

प्रश्नकर्ता: आज सुबह के सत्र में चर्चा हुई थी भय और सम्मान के बारे में। उस चर्चा में कुछ लोगों का कहना था कि हम अपने अभिभावकों की बात इसलिए मानते हैं क्योंकि हमें उनसे भय है, और कुछ का कहना था कि हम उनकी बात इसलिए मानते हैं क्योंकि हम उनका सम्मान करते हैं। तो सर, हम कुछ भी क्यों करते हैं, भय के कारण या सम्मान के कारण?

आचार्य प्रशांत: अभिभावकों को छोड़ दो अभी। मामला उलझ जाता है क्योंकि वहाँ पर मोह है, इसलिए मामला उलझ जाता है। तुम किसी की भी बात क्यों मानते हो?

प्र१: जब लालच होता है, फ़ायदा होता है।

आचार्य: और आदमी अपना दो ही जगह फ़ायदे देखता है; लालच या डर। तो बस हो गया।

प्र२: तो फिर डर और सम्मान में क्या अंतर हुआ?

आचार्य: सम्मान का मतलब आदर नहीं होता। सम्मान, चाहे अंग्रेज़ी में लो या संस्कृत में लो, उसका एक ही अर्थ होता है-‘ध्यान से समझना’। तुमने किसी को समझ लिया, यही सम्मान है। मैं अभी बोल रहा हूँ, मेरे प्रति सम्मान यह नहीं हुआ कि तुम चुपचाप बैठे हो और ‘आदरणीय महोदय’ बोल रहे हो। तुमने मेरी बात को समझ लिया यही सम्मान है।

सम्मान का शाब्दिक अर्थ भी यही है, इसको समझना। रिस्पेक्ट में ‘रि’ माने तब तक देखना, तब तक कोशिश करना, जब तक समझ न लो। इसी तरीके से हिंदी में, संस्कृत में जो सम्मान आता है, वह भी यही है ‘सम्यक मान’। सम्यक रूप से मानना, माने समझ जाना। यूँ ही नहीं मान लेना। मान नहीं, ‘सम्मान’। समझ जाना।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org