दूसरों की मदद करने की ज़रूरत क्या है?

ऐसी आध्यात्मिकता जिसमें सामाजिक चेतना सम्मिलित न हो, एक धोखा है, हिंसा है। बहुत लोग घूम रहे हैं जो कहते हैं कि — “हम आध्यात्मिक हैं, हमें दुनिया से क्या लेना-देना। दुनिया में आग लगती हो तो लगे।” इनका अध्यात्म पूरी तरह झूठा है। आध्यात्मिक उन्नति होगी तो तुम में करुणा उठेगी ही उठेगी। ये कौन-सा बोध है, जिसके साथ करुणा नहीं सन्निहित? ये कौन-सा अध्यात्म है जो कहता है कि — “अपना शरीर चमका लो, तमाम तरह की योगिक क्रियाएँ कर लो, हमें दुनिया से कोई मतलब नहीं”?

संतों ने दुनिया के लिए जान दे दी।

तुम्हारा कौन-सा अध्यात्म है?

‘अध्यात्म’ माने — सेवा।

जहाँ सेवा नहीं है, जहाँ सर्विस नहीं है, जहाँ एक समाज का हित चाहने वाली चेतना नहीं है, वहाँ कैसा अध्यात्म?

‘भलाई’ चीज़ क्या है?

तुम सिर्फ़ फूड डिलीवरी क्यों कह रहे हो, तुम लिकर डिलीवरी शुरु कर दो, हैश एंड वीड डिलीवरी शुरु कर दो — ये बिलकुल नया काम होगा।

हमने कहा कि संतों ने दुनिया के उद्धार के लिये जान दे दी, तो संत फूड डिलीवरी चलाते थे? ये उद्धार कर रहे थे वो दुनिया का? हाँ, कोई भूखा है तो उनको लंगर में बैठा लेते थे। लंगर का उद्देश्य ये होता था कि अपनी भूख मिटा ले, ताकि फिर गुरुद्वारे में प्रवेश कर सके। और कोई ऐसा हो जो लंगर में सिर्फ़ खाने आता हो, तो उसको फिर अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता।

संतों ने अगर कभी लोगों के लिए रोटी पानी का इंतज़ाम किया, तो इसीलिए किया ताकि जब उनका…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org