दूसरों की बातें बुरी लगती हो तो

हम दूसरों पर तमाम तरह से आश्रित होते हैं इसीलिए उनकी बातों से, उनके रवैये से हम बहुत प्रभावित हो जाते हैं। दूसरों की बातें सुनकर हमें बड़ी चोट भी लग जाती है और हम फूलकर कुप्पा भी हो जाते हैं।

निंदा और स्तुति दोनों हमारे लिए बड़े अर्थपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि हम दूसरों पर आश्रित हैं।

हम दूसरों पर रुपये-पैसे के लिए ही नहीं, मान-सम्मान के लिए भी आश्रित होते हैं। जो दूसरों पर आश्रित नहीं वो न निंदा से काँपेगा, न स्तुति से अघाएगा।

हमारी तो किसी ने तारीफ़ कर दी तो क्या रस बरसता है!

जब तारीफ़ से रस बरसेगा तो निंदा से चोट भी लगेगी। ये बिल्कुल साथ-साथ चलते हैं कोई ये नहीं कह सकता कि “मुझे प्रशंसा की तो कोई चाह नहीं है पर अपमान बहुत बुरा लगता है।”

जिसे मान चाहिए, अपमान उसे ही बुरा लगेगा। जो बहुत मान-अपमान की परवाह करता है उससे ज़्यादा दुर्बल, दीन और दुःखी कोई दूसरा नहीं।

आज़ाद जियें!

अहंकार कुछ जानता नहीं है इसलिए वो दूसरों की नज़र पर बहुत आश्रित रहता है। दूसरे मेरे बारे में क्या सोच रहे हैं वो बार-बार इसी टोह में रहता है। जो जितना अहंकारपूर्ण जीवन जियेगा वो उतना ही गुलामी में जियेगा। कभी दूसरों के विचारों का गुलाम रहेगा और कभी अपने तथाकथित विचारों का गुलाम रहेगा, पर रहेगा गुलाम ये पक्का है।

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant