दूसरे देशों के अंधविरोध-बहिष्कार का नाम देशभक्ति नहीं

हम अभी कह रहे थे कि भारत की मूल पहचान अध्यात्म है। अध्यात्म सीमाएं नहीं सिखाता। अध्यात्म नहीं कहता कि किसी वर्ग, जगह, धारणा, या व्यवसाय से बंधकर पड़े रहो। अध्यात्म का संबंध सत्य और शांति से है। आध्यात्मिक व्यक्ति की निष्ठा सच्चाई और शांति की तरफ होती है। उसकी निष्ठा और किसी चीज से नहीं होती; इससे-उससे किसी चीज से नहीं होती। तो यह जो तुमने कहा देशभक्ति के बारे में, यह देशभक्ति की बड़ी ही सीमित और संकुचित धारणा है कि देश से बाहर नहीं जाना है। उससे भी ज्यादा संकुचित और छोटी बात तुमने यह कर दी कि वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक पसंद है लेकिन लगता है कि कहीं मैं राष्ट्रद्रोही ना हो जाऊं अगर मैंने पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत सीख लिया।

भारत से ज्यादा खुला देश कोई हुआ है? विचार की जितनी मुक्त उड़ान भारत ने भरी है, उतनी और किसने भरी है? तो यह मुझे बात ही सुनने में बड़ी अजीब, बल्कि हास्यास्पद लग रही है कि तुम वेस्टर्न क्लासिकल सीखोगे तो तुम्हारी देशभक्ति पर कोई सवाल खड़ा हो जाएगा। तुम्हें जो कुछ भी पश्चिम से मिलता है, सब कुछ सीखो। उनका भोजन, ज्ञान, संगीत, खेल, विज्ञान, रहन-सहन का तरीका, साहित्य, कला, सब सीखो। भारत तो शिष्यत्व का देश रहा है, ज्ञान के आग्रहियों का देश रहा है।

सच्चे देशभक्त तुम तब होगे जब तुम भारत की स्पिरिट के साथ, भारत के तत्व के साथ, न्याय करोगे। जो भारत तत्व है, वह बहुत बड़े दिल का है। वह अपने आप को फैलाना भी जानता है और दुनिया भर को अपने में समेट लेना भी जानता है। पूरी दुनिया का कुछ भी ऐसा नहीं रहा है जो भारत आया हो और भारत ने उसके लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए हों। तमाम भाषाएं भारत आयीं, भारत ने स्वीकारा; तमाम धर्मों के लोग भारत में आए, भारत ने स्वीकारा। ऐसे-ऐसे लोग जो दुनिया भर में हर जगह शोषित हो रहे थे, उनको भारत ने सप्रेम शरण दी। कितनी ही भाषाएं भारत की मिट्टी पर फली-फूलीं और उनका भारतीय भाषाओं के साथ संगम भी हो गया, नई ही भाषाएं खड़ी हो गयीं। तुम आज जो खा-पी रहे हो, उस पर दुनिया के 36 मुल्कों की मोहर लगी हुई है; चार महाद्वीपों की खुशबू है तुम्हारी थाली में।

भारत की खूबी इसमें है कि कुछ है एक केंद्रीय भारतीयता जैसी चीज़ जो कभी नहीं बदलती। उसको तुम किसी भी रंग में रंग लो, उसका मूल तत्व अन-छुआ, अस्पर्शित, अन-रंगा ही रह जाता है। उसको मैं आत्मा या अध्यात्म या सत्य कहता हूँ। यह सब चीजें नहीं कि भारतीय लोग समुद्री यात्राएं और विदेश भ्रमण नहीं करते। यह सब बहुत बाद में आई हुई रूढ़ियां और अंधविश्वास हैं। पुराने हिंदुस्तानियों ने बड़ी लंबी-लंबी यात्राएं करी थीं, दूर तक जाते भी थे और दूर वाले यहाँ आते भी थे। चीनियों के बारे में तुम जानते ही हो, स्कूल में इतिहास की किताबों में पढ़ा होगा…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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