दुर्योधन और कर्ण की दूषित मित्रता

प्रश्नकर्ता: दुर्योधन ने कर्ण को युद्ध में घसीटा था। क्या दुर्योधन कर्ता था जिसने कर्ण को युद्ध में घसीट लिया, क्या दुर्योधन केंद्रीय था? या फिर कर्ण की वजह से दुर्योधन युद्ध में गया था, कर्ण के भरोसे पर? तो क्या कर्ण केंद्रीय था?

आचार्य प्रशांत: सवाल समझ पा रहे हैं? पूछा है कि क्या दुर्योधन की युद्ध की प्रबल इच्छा थी, इस कारण वो कर्ण को युद्ध में घसीट लाया, या फिर कर्ण की उपस्थिति की वजह से दुर्योधन में युद्ध की इच्छा जागृत और प्रबल हुई? तो केंद्रीय कौन है, दुर्योधन की युद्ध की इच्छा या कर्ण की उपस्थिति से आया भरोसा? यह प्रश्न है। प्रश्न स्पष्ट है सबको?

फिर आगे दो सवाल लिखे हैं जो इसी मूल प्रश्न से संबंधित हैं।

उत्तरदायी कौन है, समझना थोड़ा। तुम्हें क्या लग रहा है, कर्ण नहीं होता तो दुर्योधन युद्ध में नहीं उतरता? सुनो तुम अच्छे से। कर्ण नहीं होता तो दुर्योधन किसी दूसरे कर्ण का निर्माण करता।

दुर्योधन कौन है? युद्ध को मचलती हुई वृत्ति है दुर्योधन। पूरे राज्य पर शासन करने को बेचैन वृत्ति है दुर्योधन। किसी भी कीमत पर सत्ता पाने को उतावली वृत्ति है दुर्योधन। ताक़त की उपासक वृत्ति है दुर्योधन। ये है दुर्योधन। कोई चेहरा नहीं है दुर्योधन।

दुर्योधन सर्वव्यापक है, हम सबमें मौजूद है। सत्ता हम सबको चाहिए और धर्म और न्याय को ठुकराने को हम सभी तैयार भी हो जाते हैं। हम सब दुर्योधन हैं।

वह जो वृत्ति है भीतर मचलती हुई, वो एक नहीं सौ कर्ण तैयार कर लेगी। यह जो ऐतिहासिक कर्ण है…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org