दुनिया में इतने कम कबीर क्यों?

करोड़ों कबीर हो जाते, पर हर कबीर के पास वैसा ही घर था और वैसे ही रिश्तेदार, और वैसे ही शुभ-चिंतक और हितैषी जैसे आप के पास हैं, तो हो ही न पाए।

कबीर, कबीर कैसे हो? यदि कबीर को बता दिया जाए कि कबीर एक असंभावना है, हो ही नहीं सकते, हजारों जन्म लग जाते हैं, कबीर तो वो जिन्होंने कहा कि ‘बात की बात में राम हाजिर’, अभी-के-अभी।

जिसको अभी यकीन है कि सत्य बहुत दूर है, उसने तो यकीन करके सत्य को दूर बना दिया।

सच्चाई या जिसको भी आप मुक्ति, मोक्ष या परमात्मा कह रहे हैं, वो तो अपनी ओर से कोई दूरी बनाने में उत्सुक है नहीं, गौर करो, ध्यान से देखो, सहज़ जियो, सब सामने है, कोई बड़ी बात है ही नहीं। हाँ, तुम यह बैठा ही लो मन में कि ‘बहुत बड़ी बात है, हिमालय चढ़ जाना है, न जाने कितने जन्म लगेंगे’, जितने जन्म चाहो उतने जन्म लग जायेंगे।

कुछ दूर नहीं है, कुछ मुश्किल नहीं है, सहज को मुश्किल कह-कह के हम इसे मुश्किल बनाए दे रहे हैं। क्या है? क्या पाना चाहते हो जो इतना कठिन हो कि उसमें श्रम लगेगा, और साधना लगेगी, और न जाने क्या-क्या लगेगा, ऐसा क्या है?

जीव हो, जीवित हो, ज़िन्दगी बितानी है, उसमें इतनी जटिलता क्या है कि घोर तपस्या करनी पड़ेगी?

एक कठिन परिस्थिति में पैदा हुए थे कबीर — कह रहे हो ना कि कितने कबीर हो गए — अपने माँ-बाप का तो पता तक नहीं, गोद लिए गए और जिन्होंने गोद लिया वो भी गरीब लोग, ज़्यादा पढ़-लिख नहीं पाए, गुरु ने भी मुश्किल से ही स्वीकार किया और उसके बाद भी जीवन भर कभी ऐसा नहीं रहा कि…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org