दुनिया की आठ अरब की आबादी में आत्मस्थ व्यक्ति को कैसे पहचाने?

आत्मस्थ आदमी की पहचान तुम करना चाहते हो इसका मतलब आत्मस्थ आदमी कुछ ख़ास होता होगा, तुम ये तो कहते नहीं कि आठ अरब की आबादी में सामान्य आदमी की पहचान कैसे हो, आत्मस्थ आदमी कुछ विशेष होता होगा न।

इतना अभी मैं माने-ले रहा हूँ कि तुम्हारा ये दावा तो नहीं होगा कि मैं ही आत्मस्थ हूँ। विशेष है आत्मस्थ आदमी तभी तुम मुझसे ये सवाल पूछ रहे हो नहीं तो तुमने खुद ही पहचान लिया होता, तो विशेष काम को विशेष आदमी करेगा या औसत आदमी करेगा? लेकिन तुम हो औसत आदमी और तुम कह रहे हो कि वो जो ख़ास आदमी है उसे एक आम आदमी भी पहचान ले। अगर यह विशेष काम साधारण आदमी कर लेगा तो विशेष होने की ज़रूरत क्या है? तुम तो जैसे हो, वैसे होकर भी तुम विशेष काम कर ले जा रहे हो, ये बड़े से बड़ा काम है आत्मस्थ आदमी को पहचानना ये तो कोई विशेष आदमी ही कर सकता है न।

उल्टा अगर तुमने पूछा होता कि क्या आत्मस्थ आदमी विशेष आदमी को पहचान सकता है तो हाँ बिल्कुल पहचान सकता है क्योंकि वो विशेष है, उसमें ख़ास काबिलियत होगी तो वो साधारण आदमी को पहचान लेगा ।

अगर तुम ख़ास न होकर भी उसको पहचान गए तो ख़ास होने की ज़रुरत क्या है, फिर तो तुम ही ख़ास-म-ख़ास हो, फिर तो तुम ही सबसे बड़े हो।

तुम ये नहीं कह रहे हो कि मैं आत्मस्थ कैसे हो जाऊं, तुम कह रहे हो कि वो जो आत्मस्थ आदमी है उसको कैसे पहचानूँ? सवाल ये होना चाहिए कि क्या है आत्मा, और मैं उससे दूर क्यों हूँ और मेरी जो ये दूरी है आत्मा से ये मिट जाती है तो मैं कहलाता हूँ आत्मस्थ।

दूसरों के बारे में जानने से पहले अपनी आँखें साफ़ करो, अपनी आँखों में धूल पड़ी हो तो दूसरों पर ज़्यादा सवाल-जवाब करना लाभप्रद नहीं होता, अपने ऊपर काम करो।

तुम जब शांत हो गए, तुमने जब सब तरह के विचलनों की मूर्खता देख ली, जब सारे बन्धनों के लालच से पीछा छुड़ा लिया — तो तुम आत्मस्थ हो गए।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org