दुखिया दास कबीर है, जागे और रोए

वक्ता: सुखिया सब संसार है, खावे और सोए |

दुखिया दास कबीर है, जागे और रोए ||

~ संतकबीर

सवाल है कि क्या कबीर को भी दुःख होता है, क्या कबीर भी रोते हैं? और अगर जग ही चुके हैं तो अब दुःख काहे का है?

कौन हैं कबीर? ठीक कहा तुमने कबीर वो हैं जो जग चुके हैं, कबीर जीवन मुक्त हैं, संसार सो रहा है|

सुखिया सब संसार है, खावे और सोए |

संसार खा रहा है, संसार भोग में लिप्त है, संसार को एक ही प्रयोजन दिखाई पड़ता है जीने का कि किसी तरह से कामनापूर्ति करो| संसार इस सब में लगा हुआ है, संसार अपने आप को देह ही मानता है और पदार्थ को ही आखिरी सत्य मानता है, और इसी कारण अंततः संसार फूट-फूट के रोता है; खूब दुखी रहता है| कबीर उस अवस्था से पार पा चुके हैं| तो प्रश्न है कि अब कबीर क्यों रो रहे हैं? संसार के रोने और कबीर के रोने में अंतर है| संसार जब भी रोएगा अपने लिए रोएगा क्योंकि वो अपने को जीव माने बैठा है| कबीर, कभी अपने लिए नहीं रोएंगे| कबीर अपने जीव भाव से पूरी तरह मुक्त हैं| कबीर अपने सुख दुःख से पूरी तरह से मुक्त हैं| अपने को तो जीव नहीं जानते लेकिन ये तो देख ही रहे हैं कि तुम अपने आप को जीव मानते हो| कबीर तर गए हैं, सौ बार कबीर ने धार की, नदी की और मझदार की बात करी है| कबीर तर गए हैं पर तुम तो इसी पार अटके हुए हो| क्या कबीर का कोई व्यक्तिगत दुःख है जिसके लिए रो रहे हैं? और क्या तुम कभी रोए हो किसी ऐसे दुःख से जो व्यक्तिगत नहीं है? ये दोनों रूदन बिल्कुल अलग-अलग तलों पर हैं|

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org