दुःख, सुख, और परमसुख
प्रश्नकर्ता: एक हँसता हुआ जीवन क्या है?
आचार्य प्रशांत: तीन स्थितियां होती हैं मन की:
दुःख- जहाँ पर आंसू हैं, जहाँ मन रोता है। दुःख से मन हमेशा बचना चाहता है।
दुःख से प्रियकर स्थिति मन को लगती है सुःख की। सुःख में हंसी है, मन सुःख की ओर आकर्षित होता है। दिक्कत बस इतनी सी है, कि सुख के होने के लिए, दुःख का होना आवश्यक हो जाता है। सुख का अनुभव ही न हो, यदि दुःख न हो। तो सुःख की ओर भागकर भी मन, वस्तुतः सुःख पाता नहीं है। सुख की ओर जाता तो है, पर पाता नहीं है, क्योंकि जितना ज़्यादा से ज़्यादा उसे सुःख चाहिए, उतना ही उसे पहले दुःख का निर्माण करना पड़ेगा अन्यथा वो सुःख पा नहीं सकता।
सुःख से भी ज़्यादा सुखी, एक अवस्था होती है। सुख की जो हंसी है, वो तो बहुत ज़ल्दी आंसू में तब्दील हो जाती है। सुःख से भी ऊंचे सुःख की एक ऐसी अवस्था होती है जहाँ पर हंसी कभी रूकती ही नहीं, वो है हँसता हुआ जीवन।
समझियेगा बात को; सुःख में हमें हँसते हुए क्षण तो उपलब्ध होते हैं, पर हँसता हुआ जीवन नहीं। जो हमारा सामान्य सुःख हैं, वो हमें हँसते हुए क्षण तो दे देता है, पर हँसता हुआ जीवन नहीं दे सकता, क्योंकि कुछ क्षण आप हंसोगे, फिर रोना पड़ेगा। हमारा सुःख भी एक तनाव कि भांति है, आप बहुत देर तक हंस नहीं सकते, हंसी से मर जाओगे। ये यहाँ बैठा है, मैं इसे अगर गुदगुदी करूँ, तो ये खूब हँसेगा। एक मिनट गुदगुदी करूँ, तो ये हँसेगा। तीन-चार मिनट गुदगुदी करूँ, तो भी ये हँसेगा। और कहीं मैं इसको एक घंटे तक गुदगुदी कर दूँ, तो क्या होगा? मर जाएगा। तो ऐसा होता है…