दुःख को समझना ही दुःख से मुक्ति है
प्रश्नकर्ता: मन लगातार छवियाँ बनाता रहता है, लगातार धारणाएँ बनाता रहता है। और हम कितनी भी कोशिश कर लें असंस्कारित होने की, पर हो नहीं पाते। कुछ न कुछ हिस्सा रह ही जाता है तो इसके बारे में क्या किया जाए?
आचार्य प्रशांत: देखिये, एक बात ये समझिएगा कि प्रभावित होने वाला और ये अनुभव करने वाला कि, “मैं प्रभावित हुआ हूँ,’’ वो एक ही हैं। थोड़ा इसमें गौर से जाइएगा, वरना बात समझ में नहीं आएगी। हम हमेशा ये कहते हैं…