दुःख को ध्यानपूर्वक देखने का अर्थ?

प्रश्न: दुःख को ध्यानपूर्वक देखने का क्या अर्थ है?

आचार्य प्रशांत:

दुःख का असर तुम पर होता है, लेकिन तुम्हारा एक कोना ऐसा है, जहाँ दुःख नहीं पहुँच सकता।

उस कोने को याद रखो बस।

कुछ भी तुम्हारे साथ ऐसा कभी-भी नहीं होता है, जो तुम्हारे मन को पूरी तरह ही घेर ले।

एक छोटा-सा बिंदु होता है तुम्हारा, जो बच जाता है।

उस बिंदु को याद रखो।

तो जब दुःख आए, तो तुमसे यह नहीं कहा जा रहा है कि दुःख महसूस मत करो, लेकिन पूरे तरीके से दुःख ही मत बन जाओ। उस दुःख को आने दो। दुःख जब आएगा, तो मन कैसा महसूस करेगा?

प्रश्नकर्ता: दुःखी महसूस करेगा।

आचार्य प्रशांत: मन को दुःखी महसूस करने दो। तुम एक हिस्सा बचा के रखो, जो इस दुःखी होने को देख सकता हो। इसे ही कहते हैं — दुःख को ध्यानपूर्वक देखना। इस समझ के साथ अब जब भी तुम दुःखी हो, तो ऐसा कह सकते हो कि — “प्रशांत (प्रश्नकर्ता) को दुःख हो रहा है।” इसे ही कहते हैं — अपने दुःख को देखना।

बात समझ में आ रही है?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org