दिल दिमाग से अलग नहीं

आचार्य प्रशांत: दिल से कोई फैसला नहीं आता है, दिल से सिर्फ खून आता है। जो कुछ होता है यही मस्तिष्क होता है, दिल जैसा कुछ होता नहीं है। ये सुनकर तुम्हें धक्का लगेगा। हमने तो दिल को ही सर्वोपरि जाना था। दिल कुछ नहीं होता, मन के ही टुकड़े हैं। जो ये बात है कि दिमाग से सोचोगे तो सफलता मिलती है, दिल से सोचोगे तो संतुष्टि मिलती है, वो भी गलत है। ये दोनों अलग है ही नहीं। तुमने दो टुकड़े कर दिए हैं कि जो सफल है, वो संतुष्ट नहीं और जो संतुष्ट है, वो सफल नहीं।

ना ही दोनों अलग अलग हैं, ना ही ऐसे कोई केंद्र हैं। बस समझ का फर्क है एक ही केंद्र है, समझ का केंद्र, बाकि सारे केंद्र नकली हैं।। निर्णय और किसी भी केंद्र से आएगा तो झूँठा होगा। तुमने तो दो केंद्र यहीं बना दिए और दोनों ही झूठे हैं। विचारणा की शक्ति तुम्हारे पास एक बड़ी शक्ति है, वही विचारणा जब चरम पर पहुँच जाती है तो समझ में तब्दील हो जाती है और उससे जो फिर निर्णय निकलता है, फिर वो उचित निर्णय होता है। विचारणा को समझ में बदलने के लिए हो सकता है समय लग जाए और हो सकता है ना भी लगे। त्वरित समझ भी घटती है। त्वरित समझ ही असली समझ है, तुरन्त है। असली वही है। पर अगर तुरन्त सम्भव ना हो तो विचारो, खूब विचारो। अंततः वो सोच-विचार ख़त्म हो जाएगा, और जो शेष बचेगा वो है समझ ।

फिर एक समय ऐसा भी होता है जब सोचने-विचारने की ज्यादा आवश्यकता होती ही नहीं। देखा और समझे, तुरंत, तात्कालिक। और वो बड़ी बात है, मज़ेदार बात है कि तुमने जैसे ही सुना, जवाब दिया। कुछ सोचा ही नहीं। ठीक?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org