दिए को मशाल बनाओगे, या बुझा ही दोगे?
7 min readDec 28, 2022
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी जब मैं आध्यात्मिकता के बारे में किसी और से बात कर रहा होता हूँ तो एक शानदार ऊर्जा शब्दों के माध्यम से बह रही होती है। मैं दो घण्टे लगातार बिना सोचे-समझे बोल रहा होता हूँ। लेकिन जब मैं खुद को प्रतिबिम्बित करता हूँ उन्हीं शब्दों पर, तो मुझे ईमानदारी नहीं मिलती है। तो क्या मुझे बोलना बन्द कर देना चाहिए? क्योंकि एक अपराध-बोध सामने आता है। कृपया मार्गदर्शन करें।