दारू और चिकन वाला बाज़ार (एक राज़ है वहाँ)

आचार्य प्रशांत: टीवी पर लिसियस और इस तरह की कंपनियाँ हैं वो अब सीधे-सीधे बच्चों का इस्तेमाल करके लोगों को माँस खाने की ओर ललचा रही हैं।

जो हिंदुस्तानियों के पसंदीदा फिल्मी कलाकार हैं वो इन कम्पनियों के विज्ञापन में काम कर रहे हैं और वो विज्ञापन हर घर में दिखाए जा रहे हैं, सिर्फ एक दिन नहीं, साल भर और सिर्फ एक समुदाय के घर में नहीं, हर समुदाय के घर में दिखाए जा रहे हैं।

इससे पता क्या चलता है? इससे पता ये चलता है कि पूरे समाज ने ही जैसे जानवरों की हत्या करने को स्वीकृति दे दी है, कि, “हाँ मारो जानवरों को, हमें अपने स्वाद से मतलब है हम तो मारेंगे!” आप बात समझ रहे हैं?

आने वाला समय ऐसा होने वाला है — ये पीढ़ी ऐसी है कि ये माँस को दाल-भात की तरह खा रही है। मैंने जिस कम्पनी की बात करी थी, लिसियस, उसका जो विज्ञापन आता है उसमें छोटे-छोटे बच्चे होते हैं दो, छोटे-छोटे मासूम बच्चों के मुँह खून लगाया जा रहा है कि लो तुम माँस चबाओ।

और वो जो माँस है वो कैसे पशुओं की क्रूर हत्या करके आ रहा है, ये नहीं दिखाया जा रहा। वो उसको इस तरीके से पैकेज कर दिया गया है और बता दिया गया है कि अब ये तो स्प्रेड है, ये तो एक स्वादिष्ट स्प्रेड है। इसको मक्खन पर और इसको रोटी पर और इसको ब्रेड में लगा लो और खाओ।

जब वो स्प्रेड के रूप में आ जाता है तो उसमें जो हत्या और क्रूरता और शोषण छुपा हुआ है वो दिखाई कहाँ देता है। और पाँच साल, सात साल के बच्चों को आप जब इस तरीके की आदतें डाल देंगे खाने की तो भविष्य क्या है भारत का, विश्व का, पशुओं का, पर्यावरण का, मानवता का और अध्यात्म का?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जैसे अभी आपने बताया कि कुछ कंपनी हैं जो बहुत सक्रियता से माँस का प्रचार कर रही हैं और उसमें टीवी कलाकार जो हैं वो भी काम कर रहे हैं। तो ऐसा कभी पहले नहीं देखा। ये अभी इसी साल या फिर पिछले छः महीनों में ही अचानक से ऐसा कुछ हुआ है कि बहुत आक्रमकता से माँस का प्रचार हो रहा है। पहले मैंने ऐसा नहीं देखा। तो ये अचानक से ऐसा क्यों हो रहा है?

आचार्य: देखिए हुआ ये है कि हमने कल्चर को कैपिटल (पूँजी) के हवाले कर दिया है। हमने बाज़ार के सुपुर्द कर दिया है संस्कृति को। उन्नीस-सौ-इक्यानवे में भारत की अर्थव्यवस्था विश्व के लिए खोल दी गई। तो अंतर्राष्ट्रीय पूँजी भारत में आने लगी। जब पूँजी भारत में आएगी तो वो ये भी चाहेगी न कि लोग उसके उत्पादों को ख़रीदें।

कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी भारत में आई है तो ये चाहेगी कि ये जो कुछ भी यहाँ ला रही है आयत करके या जो कुछ भी यहाँ पर बना रही है हिन्दुस्तान में, उसको फिर देशी लोग खरीदेंगें भी तो।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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