दमित जीवन ही उत्तेजना माँगता है

हम इतनी छोटी, तेजहीन और औछी ज़िंदगी जीते हैं कि उसमें किसी भी प्रकार की असुरक्षा के लिए, ख़तरे के लिए, यहाँ तक कि विविधता तक के लिए जगह नहीं होती है।

एक राजा की कहानी है:

उसने पूरी सुरक्षा के लिए एक महल बनवाया। महल बहुत मज़बूत, अभेद्य दुर्ग। उससे किसी ने पूछा, “दीवारें तो बहुत मज़बूत हैं, पर क्या दरवाज़े मज़बूत हैं?” उसे किसी ने सलाह दी कि दरवाज़े भी उतने ही मज़बूत होने चाहिए। तो उसने दीवारों से दरवाज़े भी ढक दिये, और सिर्फ़ एक दरवाज़ा छोड़ा। उसे फिर किसी ने सलाह दी कि ख़तरे के आने के लिए तो एक दरवाज़ा भी काफ़ी है, तो यह भी बंद कर दो और अंततः उसने अपने किले को ही अपना ताबूत बना लिया। वो किला उसका मकबरा बन गया।

जो बंद दरवाज़ों में जी रहा है, उसे बड़ी इच्छा उठेगी कि किसी तरह जीवन में थोड़ी तो गरमी आये, कुछ तो ऐसा हो जिससे धड़कन बढ़े। कुछ तो ऐसा हो जिससे ज़रा खून दौड़े। तुम्हारे जीवन में शायद ऐसा कुछ है ही नहीं। शायद हर प्रकार के ख़तरे को तुमने अपने से बिल्कुल दूर रखा हुआ है। उससे फिर विकृति पैदा होती है।

तुमने देखा होगा लोगों को, लोग ज़बरदस्ती गाड़ी दौड़ाते हैं। पहाड़ पर जाकर रस्सी-वस्सी लेकर कूद जाते हैं, और यह सब कुछ एक व्यवस्थित खेल के नाम पर चलता है। यह सब कुछ नहीं है, यह विकृतियाँ हैं क्योंकि आपने आम-रोज़मर्रा के जीवन को बिल्कुल कवच से ढक रखा है। उसमें खतरा लेशमात्र भी आपने छोड़ा ही नहीं है। किसी भी प्रकार के विकल्प के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी है। जो है, सब तयशुदा है और जो तयशुदा है, वह सिर्फ़ उबाता है, उसमें सिर्फ़ बोरियत होती है।

आपको अच्छे से पता है कि आप सुबह उठकर कहाँ जाओगे, आपको अच्छे से पता है वहाँ क्या होगा, आपको यह भी पता है कि आप वापस लौटकर कहाँ आओगे, आपको यह भी पता है कि वहाँ आपको कौन-से चेहरे मिलेंगे, आपको यह भी पता है कि वो आपसे किस तरह की बातें करेंगे, आपको यह भी पता है कि उसके बाद क्या होगा, और अगला दिन भी वैसा ही होगा। सब कुछ तो तयशुदा है।

जब सब कुछ इतना तयशुदा हो जाता है, तो मन का एक कोना विद्रोह करता है। वो कहता है, “भले ही मौत का ख़तरा हो, लेकिन कुछ तो अलग हो”।

यह सन्देश है — या तो स्वयं ही ज़रा जीवन को खोल दो असुरक्षा के प्रति, चुनौतियों के प्रति, नहीं तो इतने बीमार हो जाओगे कि रोमांच के लिए किसी दिन किसी दस-मंजिली इमारत से कूदने को तैयार हो जाओगे, कि कुछ तो नया होगा।

जिनका जीवन यूँ ही चुनौतियों से, और खतरों से हर पल खेल रहा होता है, उन्हें फिर रोमांच की ज़रूरत नहीं पड़ती।

यह उत्तेजना की चाह सिर्फ़ एक गलत जीवन से निकलती है क्योंकि जीवन में अन्यथा कुछ होता नहीं, इसीलिए आपको उत्तेजना चाहिए होती है। उत्तेजना की चाह यही बता रही है कि जब सही मौका आपके सामने होता है कुछ कर पाने का, तब आप उस मौके से डर कर पीछे हट जाते हैं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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