त्यौहारों के प्रति झूठा आकर्षण

जैसे हमारे त्यौहार होते हैं, जिन तरीकों से हम उन्हें मनाते हैं, उनमें सब कुछ कुत्सित, गर्हित और नारकीय होता है। वो हमारी चेतना को और ज़्यादा तामसिक बना देते हैं। हमारे सबसे भद्दे चेहरे हमारे त्यौहारों में निकल कर आते हैं।

बड़ा दुर्भाग्य है हमारा कि भगवान के नाम पर हम जो कुछ करते हैं उसमें भगवत्ता ज़रा भी नहीं होती। अब अगर आपके चारों ओर वही सब माहौल बन रहा होगा, और बनता ही है — समाज, कुटुंब, परिवार सब मिलकर के वो माहौल रचते हैं। तो आपको बड़ी दिक्कत हो रही होगी मेरी बातें सुनने में।

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आचार्य प्रशांत और उनके साहित्य के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org