त्याग — छोड़ना नहीं, जागना
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जिन मिलिया प्रभु आपणा, नानक तिन कुबानु॥
~ गुरु नानक
आचार्य प्रशांत: मन का एक कोना मन के दूसरे कोने पर न्यौछावर है। एक मन है और दूसरा मन है, और दोनों की अलग-अलग दिशाएँ हैं। नानक कह रहे हैं, ऐसा मन जो प्रभु की दिशा में है, प्रभु पर समर्पित है, उस मन पर बाकी सारे मनों की कुर्बानी देना ही उचित है। मन दस खण्डों में विभाजित है, एक खंड बात कर रहा है प्रभु की और बाकी नौ खंड किसकी बात कर रहे हैं…?