त्याग — छोड़ना नहीं, जागना

जिन मिलिया प्रभु आपणा, नानक तिन कुबानु॥
~ गुरु नानक

आचार्य प्रशांत: मन का एक कोना मन के दूसरे कोने पर न्यौछावर है। एक मन है और दूसरा मन है, और दोनों की अलग-अलग दिशाएँ हैं। नानक कह रहे हैं, ऐसा मन जो प्रभु की दिशा में है, प्रभु पर समर्पित है, उस मन पर बाकी सारे मनों की कुर्बानी देना ही उचित है। मन दस खण्डों में विभाजित है, एक खंड बात कर रहा है प्रभु की और बाकी नौ खंड किसकी बात कर रहे हैं…?

एक खंड बात कर रहा है दुकान की, एक बात कर रहा है, “भूख़ लगी है”, एक बात कर रहा है, “नींद आ रही है”, एक बात कर रहा है “और धंधे हैं”, एक बात कर रहा है “कपड़ा-लत्ता”, और दस बातें। नानक कह रहे हैं बाकी नौ की सार्थकता बस इतने में है कि वो कुर्बान हो जाएँ, उस पहले पर। कौन है प्रथम?

मन की दस बातें हैं, मन के दस हिस्से हैं; एक मन दस बातें नहीं कहता। यही तो मन का खंडित होना है न, कि मन के दस टुकड़े हैं; ‘मन के बहुतक रंग हैं’। दस टुकड़ों में जो बँटा है, वही मन है। जो मन एक दिशागामी हो गया वो तो जल्दी ही लय हो जाएगा। मन, मन रहता ही तब तक है जब तक उसमें परस्पर विरोधी विचार उठते-गिरते रहते हैं, कभी ये पलड़ा भारी, कभी वो पलड़ा भारी, कभी वो दिशा ठीक लगी, कभी ये दिशा ठीक लगी, कभी इस कोने, कभी उस कोने।

नानक ने सूत्र दिया है उन सब लोगों को जो जानना चाहते हैं कि कौन-सी दिशा जाना है, किसको प्राथमिकता देनी है, किसको शक्ति देनी है, और किसकी कुर्बानी देनी है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org