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तैंतिस कोटि देवता मरिहैं

कीट पतंग और ब्रह्मा भी चले गए

कोई न रहेगा अवसान

~ मीरा

प्रश्नकर्ता: सर, ब्रह्मा भी चले गए, यह बात कुछ समझ में नहीं आ रही है।

आचार्य प्रशांत: कुछ नहीं है जो मन से न निकला हो।

मन ही जन्म है, मन ही मत्यु है। व्यर्थ ही नहीं कहते हैं कबीर कि तैंतिस कोटि देवता मरिहैं। तैंतिस कोटि देवता मरे हैं, कैसे? क्यों?

बात सीधी है, क्योंकि वो सारे देवता हैं क्या? मन की उपज।

जो मन से जन्म पाता है, वो मृत्यु भी पायेगा।

जिसका आना है, उसका जाना भी होगा।

ब्रह्मा मूर्त रूप हैं, उन्हें ब्रह्म न जान लेना।

ब्रह्म से समस्त ब्रह्मा हैं, और ब्रह्मा से समस्त ब्रह्माण। ब्रह्माण भी जायेंगे, ब्रह्मा भी जायेंगे।

जो न आया है, न जाएगा, उसको नाम भर दिया गया है ब्रह्म।

वो नाम भी मन की खातिर दे दिया गया है, क्योंकि तुम्हें नामों के अलावा और कुछ सूझता नहीं। तो वो जो एक सत अविनाशी मूल-तत्व है, उसका नाम ब्रह्म है। उसके अलावा सब कुछ विनाशशील है। सब कुछ मर्त्य है। वो जाएगा।

और हुआ भी यही है। भारत को ही ले लो, हिन्दुओं को ही ले लो, वेदों के आरम्भ के काल में जिन देवताओं की पूजा होती थी, वो वैदिक-काल के अंत तक आते-आते अमहत्वपूर्ण हो गए। मरण और किसको कहते हैं? स्मृति में ही ज़िन्दा थे और स्मृति से…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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