तू भी रावण है
आचार्य प्रशांतः जिसके दस सर, वही रावण। रावण वो नहीं जिसके दस सर थे, जिसके ही दस सर हैं, वही रावण। और हम में से कोई ऐसा नहीं है जिसके दस, सौ-पचास, छह-हज़ार-आठ-सौ-इकतालीस सर न हो।
(हँसी)
दस सरों का मतलब समझते हो? एक ना हो पाना, चित्त का खंडित अवस्था में रहना, मन पर तमाम तरीके के प्रभावों का होना। और हर प्रभाव एक हस्ती बन जाता है; वो अपनी एक दुनिया बना लेता है; वो एक सर, एक चेहरा बन जाता है; इसीलिए हम एक नहीं होते…