तुम होते कौन हो जज करने वाले?

प्रश्नकर्ता: मेरा एटिट्यूड रहता है कि अगर कोई बंदा है उसमें कुछ अच्छाईयाँ हैं कुछ बुराइयाँ भी हैं; एवरीथिंग इज देअर (सब कुछ है)। तो उसके अंदर जो अच्छाइयाँ हैं उसके उस अच्छाई को बढ़ावा दिया जाए और तारीफ की जाए, जिससे उसमें सकारात्मक बदलाव हो। और ‘किसी को जज न करो’ इस विषय में मैं सोचता हूँ कि यदि कोई अपराधी भी मेरे सामने आ जाए तो मैं सोचता हूँ कि जज करने वाला मैं कौन होता हूँ, उसको बुरा कहने वाला मैं कौन होता हूँ। उसकी भी कुछ मजबूरियाँ रही होंगी तभी वो अपराधी बन गया और उसमें भी कुछ अच्छाईयाँ हैं। तो मैं उसकी अच्छाइयों को देखता हूँ। क्या मैं सही हूँ इस विषय में?

आचार्य प्रशांत: देखिए पहली चीज़ जो इन्होंने कही कि आदमी होता है आदमी में कुछ अच्छाईयाँ भी होती हैं कुछ बुराईयाँ भी होती हैं। तो जो अच्छाइयाँ हैं उनकी ओर क्यों न देखें, पॉज़िटिव (सकारात्मक) क्यों न जिएँ।

आपका जो पूरा मेंटल मॉडल है न पेराडाइम, वो बिहेवियरल (स्वभाव सम्बन्धी) है। आप देख रहें हैं कि एक आदमी है — बहुत ग़ौर से समझिएगा — एक आदमी है उसके पास कुछ चीज़ें हैं, कुछ अच्छी चीज़ें, कुछ बुरी चीज़ें हैं। कुछ उसे आप बोल रहे हैं ‘उसके पास’ ‘उसमें’, कुछ गुड क्वालिटीज़ हैं, कुछ बेड क्वालिटीज़ हैं। तो आप उन चीज़ों की बात कर रहे हैं जो उसके पास हैं, आप उसकी नहीं बात कर रहे ‘जो वो है’।

आप उसके केंद्र की बात ही नहीं कर रहे हो आप उसके बिहेवियर की बात कर रहे हो। आप उसके केंद्र की बात नहीं कर रहे हो, आप उसके गुणों की बात कर रहे हो। जो असली बात है वो ये है कि अगर केंद्र ही गलत है तो कुछ भी अच्छा नहीं हो…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org