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तुम ही सुख-दुःख हो

जिसकी सुरती जहाँ रहे, तिसका तहाँ विश्रामभावै माया मोह में, भावै आतम राम– संत दादू दयाल

वक्ता : क्या कहते हैं कबीर भी?

“जल में बसे कुमुदनी, चंदा बसे आकाश जैसी जाकी भावना, सो ताही के पास”

यह बिल्कुल वही है जो अभी दादू न कहा । तुम जीवन में कहाँ हो, कैसे लोगों से घिरे हो, कौन तुम्हें मिला है, किसके पास हो, “जैसी जाकी भावना सो ताही के पास” । “जिसकी सुरती जहाँ रहे तिसका तहाँ विश्राम,” तुम किसके साथ जाकर के ठहरे हो, तुम कहाँ जाकर के अटके हो, इससे बस यही पता चलता है कि तुम्हारा मन कहाँ अटका हुआ है । क्या तुम्हें भाता है, इससे बस यही पता चलता है कि तुम्हारे मन का क्या ढर्रा है ? कैसे लोग तुमने आकर्षित कर रखे हैं चारों तरफ़, इससे बस यही पता चलता है कि तुम्हारे मन को क्या चाहिए ।

जीवन में तुम्हारी स्थिति क्या है, क्या भोग रहे हो, इससे बस यही पता चलता है कि तुम्हारी वृत्तियाँ और धारणाएँ कैसी हैं ।जेम्स एलेन की एक छोटी-सी किताब है, ‘एज ए मैन थिन्केथ‘ । जो पूरी युक्ति है वो यह है कि, “एज ए मैन थिन्केथ, सो डथ ही बिकमैथ (जो जैसा सोचता है, उसको वैसा ही मिलता है)”।

कोई कभी यह न कहे कि जीवन में मुझे कुछ भी संयोगवश मिल गया । जीवन में तुम्हें जो कुछ भी मिला है, वो कहीं गहरे में तुम्हारी इच्छा रही है । आज जीवन में अगर कटुता और ज़हर ही पाते हो, तो यही जीवन में तुमने माँगा था । हो सकता है अनजाने में माँगा हो, हो सकता है समझे न हो इसलिए मांग लिया । पर जीवन में अगर विषाद पाते हो, तो दोष किसी को देना नहीं । “जैसी जाकी भावना सो ताहि के…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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