तुम ही सुख-दुःख हो
जिसकी सुरती जहाँ रहे, तिसका तहाँ विश्रामभावै माया मोह में, भावै आतम राम– संत दादू दयाल
वक्ता : क्या कहते हैं कबीर भी?
“जल में बसे कुमुदनी, चंदा बसे आकाश जैसी जाकी भावना, सो ताही के पास”
यह बिल्कुल वही है जो अभी दादू न कहा । तुम जीवन में कहाँ हो, कैसे लोगों से घिरे हो, कौन तुम्हें मिला है, किसके पास हो, “जैसी जाकी भावना सो ताही के पास” । “जिसकी सुरती जहाँ रहे तिसका तहाँ विश्राम,”…