तुम ही साधु, तुम ही शैतान

वास्तव में वृत्तियों का लोप होना ही आत्मा का जगना है क्योंकि आत्मा ना तो जगती है, ना सोती है सिर्फ़ मन कहता है आत्मा जगी या सोई, मन के सन्दर्भ में ही आत्मा का जागरण होता है अन्यथा ना आत्मा का जागरण है ना निद्रा है।
आत्मा का जागरण वास्तव में मन का जागरण हैं आत्मा के प्रति।
पशुता अजैविक होती है, दुष्टता सामाजिक होती है।
दुष्टता हमें समाज देता है क्योंकि समाज बहुत उत्सुक…