तुम मानव हो या मशीन?

प्रश्न: आचार्य जी, अचानक गुस्सा क्यों आता है?

आचार्य प्रशांत: बल्ब चालू करते हो, कितना टाइम लगता है बल्ब को जलने में? सब कुछ अचानक हो जाता है ना? हम भी वैसे ही हैं।

प्रश्नकर्ता: लेकिन बाद में दुःख होता है ना, कि हमने गलत किया !

आचार्य प्रशांत: बाद में वो जो बंद होता है पंखा चलने के बाद, तो गर्मी होती है उसमें खूब। गर्मी पैदा हो गई होती है, वो बाद में पता चलती है।

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, इसमें और मेरे प्रश्न में क्या सम्बन्ध है?

आचार्य प्रशांत: सम्बन्ध यह है कि हम ऑटोमैटिक (यंत्रवत) जी रहे हैं। हम में कोई चेतना नहीं! जैसे एक पंखा ऑटोमैटिक है ना? इधर दबाया नहीं कि चालू हुआ। बटन है! वैसे ही हमारे मन में बटन है। बटन है — गाली! गाली दी नहीं कि…..?

प्रश्नकर्ता: गुस्सा।

आचार्य प्रशांत: जैसे ये फ़ोन है, ये वॉइस-ऑपरेटेड (ध्वनि-संचालित) भी है। मैं इसको यहाँ से कुछ बोल दूँ, तो ये कुछ काम करना शुरू कर देता है। सारे ही फ़ोन अब ऐसे होने लग गए हैं। तो मैंने इस फ़ोन को कुछ बोला नहीं कि इसने काम करना…..?

श्रोतागण: शुरू कर दिया।

आचार्य प्रशांत: शुरू कर दिया। वैसे ही मैंने तुम्हें गाली दी नहीं कि तुमने गुस्सा करना…..?

श्रोतागण: शुरू कर दिया।

आचार्य प्रशांत: ऑटोमैटिक है। क्योंकि ‘चेतना’ नहीं है इसमें कहीं। ‘मैं’ कहीं मौजूद नहीं हूँ, एक मशीनी काम चल रहा है। ऐसा हमारा जीवन है।…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org