तुम जहाँ हो, वहीं उसको अपने साथ रखो
प्रश्नकर्ता: मुझे नींद न आने की भारी समस्या है। आपके कहे अनुसार ख़ुद को थकाती हूँ, तो कुछ नींद आती है, पर तब भी मुश्किल तो होती ही है। तो इन दिनों मैं अपने साथ ‘जपजी साहिब’ लेकर सोती हूँ, साहब साथ होते हैं, तो नींद आसानी से आ जाती है। मैं अंधविश्वास में तो नहीं पड़ रही हूँ न?
आचार्य प्रशांत: नहीं बिलकुल भी नहीं! देखिए, संगत के तीन तल होते हैं, वो कौन-से हैं, वह इसपर निर्भर करता है कि आप ख़ुद किस तल पर हैं। आप अगर अभी शरीर के तल पर जी रही हैं तो आपको सत्य की संगत भी शरीर के तल पर ही चाहिए होगी। जब आप मन के तल पर जीने लगेंगी तो आपको सत्य की संगत मन के तल पर चाहिए होगी — माने विचार के रूप में। और जब आप आत्मा हो जाएँगी, आत्मस्थ हो जाएँगी, तब आपको सत्य की संगत आत्मा के रूप में ही चाहिए होगी — माने फिर संगत चाहिए ही नहीं, क्योंकि आत्मा को आत्मा की क्या संगत देनी, आत्मा तो अद्वैत है, दो आत्माएँ नहीं हैं।
लेकिन हममें से ज़्यादातर लोग किस तल पर जी रहे होते हैं? हम किस भाव के साथ जी रहे होते हैं? हम देहभाव के साथ ही तो जी रहे होते हैं न! जब हम देहभाव के साथ जी रहे हैं तो ईमानदारी की बात यही है कि हमको कोई चाहिए देह में ही जो हमें सत्य की संगत करा सके, या जिसके माध्यम से हमें सत्य की संगत हो सके।
तो आप अपने साथ ‘जपजी साहिब’ को रखती हैं, है न? वह एक पुस्तक की एक प्रति है, वह एक देह हुई, वह एक स्थूल चीज़ हुई; है न? आप अभी स्थूल भाव में जी रही हैं। प्रमाण उसका ये है कि आपको नींद वगैरह नहीं आती। आपने लिखा है कि मुझे नींद न आने की भारी समस्या है।…