तुम 'कूल' कैसे हो गए?
प्रश्नकर्ता: सर आप 'कूल' लोगों का एकदम बाजा बजा देते हो। तो सवाल मेरा यह है कि आप कूल लोगों की इतनी बजाते क्यों हैं? उनकी इतनी बेइज्जती क्यों करते हैं?
आचार्य प्रशांत: 'कूल' माने क्या? 'कूल' के आध्यात्मिक अर्थ हो सकते हैं। कृष्ण अर्जुन को गीता में कहते हैं — तू विगत ज्वर हो जा। उसे सिखाते हैं विगत ज्वर होना। विगत ज्वर समझते हैं? ज्वर माने, बुखार। बुखार माने हॉट (गर्म)। विगत ज्वर माने कि अब जिसको बुखार नहीं चढ़ता। माने जो 'कूल' हो गया। तो वही कह रहे हैं अर्जुन को — तू 'कूल' हो जा।
पर फिर कूल होने का जो असली मतलब है वो हमें पता तो हो। जिसको अब ज्वर नहीं चढ़ता; ज्वर माने उन्माद, आवेश, आवेग, वो कूल हो गया। अब दुनिया आ करके उसको आँच नहीं दिखा पाती। दुनिया उस पर चिंगारी नहीं फेंकती कि अब ये जल उठेगा। जो अब ज्वलनशील नहीं रहा वो कूल हो गया, है न?
तो कूल होना अच्छी बात है, तो मैं कूल लोगों के ख़िलाफ नहीं हूँ, ना बाजा बजाता हूँ, जो भी तुम कह रहे हो। बात ये है कि ये लोग कूल हैं नहीं, जो अपने-आपको कूल बोल रहे हैं। तो मुझे इनके कूल होने से समस्या नहीं है क्योंकि कूल हो जाएँ, यह तो अध्यात्मिक बात है। वो तो कृष्ण की बात का अनुसरण कर रहा है कूल हो करके। विगत ज्वर हो गया।
कूल होने में कोई समस्या नहीं है पर कूल हो नहीं और फिर भी अपने-आपको कूल कह रहे हो, यह समस्या है क्योंकि वो बेईमानी हुई न। तुम हो नहीं कूल*। भीतर तुम्हारे गरमा-गरम लावा उबल रहा है और अपने आप को बोल क्या रहे हो? कि, "मैं तो *कूल हूँ!" मुझे उससे समस्या है।
तुम कूल क्यों नहीं हो? मैं सवाल तुम्हारी ओर पलट रहा हूँ। तुम कह रहे हो कि मुझे कूल लोगों से क्या समस्या है, नहीं, मेरी समस्या ये है कि तुम कूल क्यों नहीं हो। तुम्हें कूल…