तुम उस कमी से परेशान हो जो है ही नहीं
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जो आदमी, जो व्यवस्था, जो शिक्षा, जो माहौल, जो संगति तुम्हें ये सन्देश देती हो कि तुममें मूल रूप से कोई कमी है, उससे बचना।
और वो सन्देश यह कह के नहीं दिया जाता कि तुममें कमी है, वो सन्देश अक्सर ये कह के दिया जाता है कि हम तुम्हारी कीमत में कुछ इज़ाफा कर सकते हैं। इज़ाफा तो तभी किया जाएगा न जब पहले कोई कमी होगी?
उनसे पूछो कि ‘तुझे मुझमें ऐसी क्या कमी दिख रही है, कि तू मूल्य वृद्धि कर देगा?’
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