तुम्हें ज़िन्दगी की पहचान होती तो ऐसे होते तुम?

मोहे मरने का चाव है, मरूं तो हरि के द्वार। मत हरि पूछे को है, परा हमारे बार॥
~ संत कबीर

आचार्य प्रशांत: मोहे मरने का चाव, मरूं तो हरि के द्वार

“धार्मिक हूँ, आध्यात्मिक हूँ, समझ गया हूँ कि, समर्पण के सिवा कोई रास्ता नहीं है। समझ गया हूँ कि जिसको मैं अपना होना कहता हूँ वही सारे दुखों का कारण है तो इसलिए मरना चाहता हूँ”, मरने का अर्थ है…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org