तुम्हीं बड़े होशियार हो?

ये कितनी अजीब सी बात होती हैं न!

आपका एक मोबाइल फ़ोन होता है, उसमें भी आपको अगर टूट-फूट दिखाई देती है तो आप खुद तो नहीं छेड़ने लग जाते! उसको भी आप ले जाते हैं सर्विस सेंटर में देने। घर में बिजली के तारों का जाल बिछाना होता है, थोड़ी वायरिंग करनी होती है, वो भी आप खुद नहीं करते। उसके लिए भी आप एक मिस्त्री को बुलाते हैं। छोटी-मोटी प्लम्बिंग के लिए भी आप कारीगर को बुलाते हैं।

आप भली-भाँति जानते हैं कि हर काम करने के लिए एक सुयोग्य पात्र की ज़रूरत होती है।

नल तक सुधारने के लिए विशेषज्ञ की ज़रूरत है और किसी की ज़िन्दगी सुधारने का काम आप खुद कर लेंगे?

या जिसकी ज़िन्दगी आप सुधारना चाहते हैं, उसकी ज़िन्दगी की हैसियत एक नल की टोटी की जितनी भी नहीं है?

नल की टोटी सुधारनी है तो हम बुलाते हैं प्लम्बर को और अपने बच्चे का मन ठीक करना है तो हम कहते हैं, मैं हूँ न उस्ताद। मैं ठीक करूँगा।

कैसे ठीक कर दोगे? क्या जानते हो? कौन हो? कितना अहंकार चढ़ा है कि लग रहा है दूसरे की ज़िंदगी बदल दोगे?

बात अहंकार भर की भी नहीं होती है। सीधा-सीधा शोषण का मामला है। हम उन्हीं की ज़िंदगियाँ बदलना चाहते हैं जो बेचारे बेबस होते हैं, हम पर आश्रित होते हैं , निर्भर होते हैं।

आमतौर पर ये काम छोटे बच्चों के साथ किया जाता है। अब वो भाग कर जाएंगे कहां? बहुत छोटे-छोटे हैं। वो निर्भर हैं आप पर। तो जो आपका मन करता है वही उनको पट्टी पढ़ाते हैं।

“अरे बेटा! हटा तू ये सब, क्या पढ़ रहा है रामकृष्ण कथामृत, उपनिषद-सार! ये बेकार की बातें हैं। आचार्य शंकर! हटाओ इनको। हम बताते हैं न तुझको। आ हमारे सामने बैठ।”

और फिर जब पाते हो कि तुम्हारे बच्चे की ज़िन्दगी में कोई आलोक नहीं, कोई रौशनी नहीं, तो कहते हो, “यही नालायक निकला। न जाने किसकी औलाद है!”

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org