तुम्हारे ही केंद्र का नाम है गुरु

गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोबिंद दियो मिलाय।।

~ संत कबीर

प्रश्नकर्ता: गुरु और गोविंद में क्या फ़र्क कहा गया है और उससे क्या अभिप्राय है? क्या यह कहा जा रहा है कि गुरु और गोविंद दोनों हैं, तो पहले गुरु के चरण स्पर्श किए जाएँगे और फिर गोविंद के? बात अबूझ सी लगती है। कृपया समझाएँ।

आचार्य प्रशांत: गुरु कौन है, इस पर जो कह दिया है कबीर ने इससे आगे कुछ बात कही नहीं जा सकती-’गोबिंद दियो मिलाय’।

जो गोविंद से मिला दे, सो गुरु।

निश्चित सी बात है कि जब हम अपने-आप को संसारी, देह, तन, मन मानते हैं तो यह मिलाने वाला भी कोई ऐसा होना चाहिए जो संसार का ही हो, और मिलाने वाला मिला सके इसके लिए यह भी अनिवार्यता है कि वो उसको भी जानता हो जिससे मिलाने ले जा रहा है।

गुरु की पहचान यही है कि वो एक छोर पर तो बिलकुल आपके जैसा है, इसी संसार का है, आपके जैसा दिखता है, शरीर है, पदार्थ है, चलता है, फिरता है, कहता है, सोचता है; आप उससे पहचान बना सकते हो, गले मिल सकते हो, दोस्ती कर सकते हो, वो आपकी भाषा समझता है, बात करो, संवाद करो और दूसरे छोर पर वो कहीं ऐसी जगह है जो अभी आपके लिए अनजानी है, दूसरे छोर पर वो कभी किसी ऐसे देश का निवासी है जहाँ आप कभी गए नहीं। वो आपके निकट भी है और आपसे बहुत दूर भी।

निकट ना हो तो मन को भरोसा ना आएगा। मन है ही ऐसा, वो कैसे ऐसे का भरोसा करे जो उसके जैसा नहीं। तो गुरु का आपके जैसा…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org