तुम्हारे भीतर सौ खामियाँ हों, तुम्हें एक-सौ-एक पता होनी चाहिए

पर उन खामियों से दबकर , हारकर, अपने-आपको गिरा हुआ नहीं मान लेना है। बिल्कुल भी नहीं !

साफ़ देखना है कि तुम कितने गिरे हुए हो, और फिर मुट्ठी भींच कर, हँस कर कहना है,

“पतन मैंने जी लिया परमात्मा मेरा बाकी है।”

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org