तुम्हारी हैसियत है कुत्ते जैसा होने की?

प्रश्न: हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है?

आचार्य प्रशांत: न हो तो?

श्रोता १: तो हमारे और जानवरों में क्या फर्क रह जाएगा?

आचार्य प्रशांत: न हो तो? तुम में और जानवरों में कोई फर्क नहीं है, इसकी चिंता जानवरों को होनी चाहिए न!

“हममें और इंसानों में कोई फर्क ही नहीं है”, यह परवाह तो जानवरों को होनी चाहिए।

तुममें अगर जानवरों से कुछ अलग नहीं है तो तुम्हारे लिए तो गौरव की बात है।

“हम कुत्तों जैसे हैं” — तुम्हारे लिए तो गौरव की बात होनी चाहिए। कहाँ कुत्ते, कहाँ हम!

यह कोई विषाद की बात है कि हममें और कुत्तों में कोई फर्क नहीं है। यह तो वैसी ही बात है कि कोई भिखारी बोले कि हममें और करोड़पतियों में कोई फर्क नहीं है। इसकी चिंता तो करोड़पति को होनी चाहिए। भिखारी के लिए तो यह गौरव की बात है।

तुम क्या समझते हो अपने आप को! मैंने आज तक एक भी ‘संवाद’ कुत्तों के साथ नहीं किया। क्योंकि उन्हें जरूरत ही नहीं पड़ती।

अपनी हालत देखो।

मैं कुत्तों को बुलाऊँ और यहाँ बैठाऊँ, सुनेंगे ही नहीं मुझे। इसलिए नहीं कि वो नासमझ हैं, इसलिए कि वो मुझसे ज़्यादा समझदार हैं। उन्हें इसकी ज़रूरत ही नहीं। तुमने जितने भी सवाल पूछे, मैं प्रमाणित किये देता हूँ, इनमें से एक भी सवाल कुत्तों को परेशान नहीं करता है। तुमने कहा, “दूसरों के सामने बोलने से घबराता हूँ”, तुमने कोई कुत्ता देखा जो करोड़पतियों को देख कर…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org