तुम्हारी‌ ‌ही‌ ‌रोशनी‌ ‌गुरु‌ ‌बनकर‌ ‌सामने‌ ‌आ‌ ‌जाती‌ ‌है

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, क्या हममें क्षमता नहीं है जीवन को समझने की? क्या गुरु का होना ज़रुरी है?

आचार्य प्रशांत: ये नहीं कहना चाहिए कि हममें क्षमता नहीं है तो हमें गुरु का सहारा लेना चाहिए। इसको ऐसे कहते हैं कि हमारी हीं जो क्षमता है वो हमारे सामने गुरु बनकर खड़ी हो गयी है। अगर कहोगे, “हमारी क्षमता नहीं है इसलिए हमें गुरु का साथ लेना है” तो तुमने गुरु को क्या बना दिया? पराया बना दिया न। तुमने कहा, “मैं और मेरी क्षमता, ये अधूरे हैं तो फ़िर इसीलिए मैं किसी और की मदद ले रहा हूँ” तो फ़िर वो ‘और’ कौन हो गया? अपना तो तुमने कह दिया कि ‘मैं हूँ’ और ‘मेरी क्षमता’ तो फ़िर गुरु क्या हो गया? पराया हो गया न। पराया हो गया तो फ़िर मदद कैसे होगी?

तो इसको कहते हैं कि मेरी ही क्षमता मेरी आँखों के सामने खड़ी हो गयी है गुरु बन कर। वो सामने खड़ी हो गयी है ताकि अंदर वाली क्षमता को जगा सके। वो बाहर दिखाई दे रही है ताकि अंदर वाले का ध्यान आ जाए। बाहर दिख रही है, बाहर है नहीं। गुरु बाहर दिख रहा है, बाहर है नहीं। ये उसकी करुणा है कि वो बाहर दिख रहा है। ये उसकी करुणा है कि उसने खाल ओढ़ ली है, कपड़े पहन लिए हैं, साकार हो गया है। वो बाहर का नहीं है, वो भीतर का ही है।

पर जब तक वो भीतर-भीतर है तुम उसकी बात सुनते नहीं। तो फ़िर उसे बाहर आकर खड़ा होना पड़ता है। क्यों? क्योंकि तुमने किसकी सुननी शुरू कर दी है? बाहर वालों की। चूँकि अब तुमने बाहर वालों की सुननी शुरू कर दी है तो वो कहता है, “चलो ठीक है! तुम बाहर वालों की ही सुनते हो तो मैं…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org