तुम्हारी सहमति के बिना ठगे नहीं जा सकते तुम

कबिरा आप ठगाइये, और न ठगिए कोय|

आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुःख होय||

~संत कबीर

वक्ता: इसको समझने के लिए एक दोहा और लिखिए इसके साथ:

माया तो ठगनी भयी, ठगत फिरत सब देश|

जा ठग ने ठगनी ठगी, ता ठग को आदेश||

मुक्ति सर्व आयामी और पूर्ण है| अस्तित्व में कुछ भी ऐसा नहीं है जो एक अनिवार्य बंधन के रूप में हमारे ऊपर हो| समझने वालो ने इस बात को बड़ी गहराई से समझा है कि कुछ भी अकस्मात कहीं हो ही नहीं रहा, कि कुछ भी बिना हमारी इच्छा के, बिना हमारी सहमति के हो ही नहीं रहा| बंधन है तो इसीलिए कि हमारी सहमति है, बंधन नहीं है तो भी इसीलिए कि हमारी सहमति है|

एक अवस्था में हैं तो इसीलिए हैं क्योंकि उसी अवस्था में होना चाहते हैं| ध्यान दीजिएगा, संयोग नहीं है, अनिवार्यता नहीं है, प्राराब्द्ध नहीं है, यदि किसी अवस्था में अपने आप को पाते हैं तो सिर्फ इसीलिए कि उसी अवस्था में होना चाहते हैं| मुक्ति पूरी-पूरी है हम को किसी और अवस्था में हो जाने की लेकिन अस्तित्व सिर्फ़ हमारी इच्छा का आदर कर रहा है| हम चाहते हैं उस अवस्था में रहना, तो हमे उसी अवस्था में रहना पड़ रहा है| और जिस क्षण चाहेंगे अवस्था बदल जाए, वो बदल जाएगी|

ज्यों ही इच्छा उठेगी कुछ और होने की उस इच्छा का आदर किया जाएगा, बात बदल जानी है| ये बात बहुत गहरी है, ये हम से हमारी सारी लाचारियाँ छीन लेती है, सारे बहाने छीन लेती है| हम बिलकुल ये न कहें कि कुछ भी हमारे ऊपर…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org