तुम्हारी ज़िन्दगी, तुम्हारी ज़िम्मेदारी

तुम्हारी ज़िन्दगी, तुम्हारी ज़िम्मेदारी

प्रश्नकर्ता: आपके हिसाब से एक साधक को या जो इस रास्ते पर चल रहा है, उसको क्या करना चाहिए? उसका क्या कर्तव्य होना चाहिए?

आचार्य प्रशांत: पूछने की बात ही नहीं है, बात तुम्हारे अपने अनुभव की है। दिन भर जो अनुभव हो रहे हैं, क्या जानते नहीं हो वो कैसे हैं? दफ्तर लेट (देरी से) पहुँचते हो और दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा है कि कहीं बॉस का सामना ना हो जाए। जानते नहीं हो कि ये क्या है?

हाँ, अब तुम इसको किसी सुंदर शब्द के पीछे ढाँप दो तो अलग बात है, वरना तुम्हें पता होना चाहिए न कि तुम एक ऐसी जगह पर आ रहे हो जहाँ तुम्हें डर है। और अगर ये नहीं पता वाकई कि जीवन कैसा चल रहा है तो कोई गुरु, कोई ग्रंथ, कोई अध्यात्म मदद नहीं कर सकता।

देखिए, शुरुआत वहाँ से होती है जहाँ सबसे पहले आप कहें कि आपको समस्या है। आप अगर कह रहे हैं कि आपको पता ही नहीं है कि समस्या है भी कि नहीं तो कोई शुरुआत कैसे होगी? अगर ठीक ही चल रहा है सब तो चलने दो भाई! क्यों उसको छेड़ते हो, और ठीक नहीं चल रहा तो उसे चलने क्यों देते हो?

प्र२: इतना आसान होता तो फिर इतनी ज़रूरत ही नहीं थी इन सब की।

आचार्य: इतना ही आसान है। समस्या पता ना होने की नहीं है।

प्र२: समस्या है, वो हमें पता है; उसका समाधान निकल नहीं पा रहा है, वो बात है।

आचार्य: समस्या मान कहाँ रहे हो समस्या को? समस्या को ही अगर अपनी उपलब्धि मान रहे हो तो समस्या का समाधान कभी होगा क्या? तुम्हारी ज़िंदगी की जो बड़ी-से-बड़ी…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org