तुम्हारी खातिर झुक गया कोई

ओशो ने कई बार यह बात स्वयं कही है कि तुम्हें आकर्षित करके अपनी तरफ बुला रहा हूँ, आकर्षित नहीं करूँगा तो तुम मेरी तरफ आओगे नहीं और जिसको आप आकर्षित कर रहे हो उसे उसके मन के अनुसार ही तो आकर्षित करना पड़ता है।

ओशो यह जानते थे कि लोग कैसे होते हैं, लोगों के मन कैसे होते हैं और लोग किस बात से लोभित होते हैं।

ओशो के तरीके व्यवहारिक थे, उनके माध्यम से जितने लोगों को प्रकाश मिला उतना किसी और से नहीं मिला।

ओशो कोई नैतिकतावादी नहीं थे। वह सत्य की खातिर मिलावट भी करने को तैयार थे और मैं इस बात को सत्य के प्रति उनके समर्पण का प्रमाण मानता हूँ।

1960 के ओशो की आप अगर तस्वीर देखें तो एक धोती पहनें आदमी फर्श पर बैठा हुआ है, और 1980 के ओशो की आप तस्वीरें देखें तो टोपी, घड़ी, गाड़ियाँ आदि…आपको क्या लग रहा है कि बीस साल में उनकी मति मारी गई थी? 1960 में जो वह जानते थे, 1980 में उन्होंने वह भुला दिया था क्या? ऐसा तो नहीं हुआ था।

यह उनके प्रेम का प्रमाण है कि उन्होंने अपने आप को विदूषक बनाना भी स्वीकार कर लिया तुम्हारी खातिर।

कृष्णमूर्ति ने कहा कि सत्य बहुत ऊँचा होता है, आपको उस तक उठना होगा, सत्य नीचे नहीं आएगा। ओशो ने कहा नहीं ऐसी बात नहीं है, सत्य सिर्फ ऊँचा ही नहीं होता, सत्य प्रेमी भी होता है। जब वह देखेगा कि आप उठने को तैयार नहीं तो वह खुद झुक कर आएगा आपके पास।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org