तुम्हारा सबसे अंतरंग सम्बन्ध
स्रोत से एक गहरा रिश्ता होना बहुत महत्वपूर्ण है। यह एक कॉन्सेप्ट भर नहीं हो सकता है। आप जो चाहें- वाहे गुरु, अल्लाह- हमने अभी माँ बोला, कभी स्रोत बोला, कभी परम बोला या सत्य, जो भी बोलिये उसके साथ एक रिश्ता होना बहुत ज़रूरी है। अगर आपका उसके साथ कोई रिश्ता नहीं है तो आपकी अनाथ जैसी हालत रहेगी। अनाथ समझते हो, ‘अनाथ’ मतलब वही जिसका नाथ से कोई रिश्ता नहीं। मैं सबसे एक सवाल पूछ रहा हूँ क्या आपका कोई रिश्ता है, व्यक्तिगत रिश्ता, परम के साथ? कोई दोस्ती यारी? कैसा भी रिश्ता, माँ जैसा, बाप जैसा, भाई जैसा, प्रेमी जैसा, कोई रिश्ता है? रिश्ता नहीं है तो बड़ी दिक्कत हो जाएगी।
जब होगा तब बड़ा अच्छा, बड़ा भरा-भरा लगेगा, मन एकदम भरा सा रहेगा। सबसे गहरा वही रिश्ता होता है। अगर वह रिश्ता नहीं है, तो कोई और रिश्ता किसी काम का नहीं है। संतों का वो रिश्ता ऐसा हो जाता है कि वह बात ही करते हैं। तो आपका कोई है ऐसा रिश्ता? वो मौन का भी हो सकता है। वह कैसा भी हो सकता है, वो आपकी मन की संरचना के ऊपर है कि आप कैसा रिश्ता बनाते हैं। आप उसे प्रेमी भी बोल सकते हैं, प्रेमिका भी बोल सकते हैं, आप उसे निर्गुण ब्रह्म बोल सकते हैं, आप उसे निराकार रूप में देख सकते हैं, आप उसे मूर्त में देख सकते हैं। उसको आप ‘मैं’ बोल सकते हैं, उसको आप ‘तू’ बोल सकते हैं। पर एक रिश्ता होना बहुत ज़रूरी है। बड़ी गन्दी हालत होगी अगर आपके पास ऐसा कोई रिश्ता ही नहीं है।
जानते हैं नास्तिक कौन होता है?
वही होता है नास्तिक जिसके पास ये वाला रिश्ता नहीं है। नास्तिक वही नहीं है जो बोल दे कि ‘ईश्वर नहीं है’ (नो गॉड)…