तुम्हारा प्रयास ही बाधा है समझने में
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आचार्य प्रशांत (आचार्य): हड़बड़ी नहीं दिखानी है, न कुछ करने में कूद पड़ना है। जब उलझन में हो, तो रुक जाना है, ठहर के उस उलझन को समझ लेना है। और समझते ही सब साफ़ हो जाएगा — क्या करना है, क्या नहीं, अपने आप दिखाई देने लग जाएगा। जब उलझन हो तो याद रखो, वहाँ पर जल्दी से कुछ कर नहीं देना है। हम काम से ऑब्सेस्ड रहते हैं, जब उलझन हो तो सबसे पहले उस उलझन को समझ लेना है। और समझते ही फिर उलझन रहेगी नहीं। ठीक है? कुछ आ रही है बात समझ में? कुछ कर नहीं देना है कि फिर क्या करें? कुछ नहीं करना है।
प्रश्नकर्ता (प्र): लेकिन सर, कुछ स्थितियाँ ऐसी होती हैं कि वहाँ जल्दी निर्णय लेना होता है, तो वहाँ क्या करें?
आचार्य: अगर नहीं लोगे तो कुछ नुकसान होगा? उससे ज़्यादा बड़ा नुकसान हो जाएगा अगर निर्णय जल्दी ले लिया। तो नुकसान होता है ना तो बर्दाश्त कर लो, क्योंकि निर्णय ले करके जो नुकसान होगा वो उससे ज़्यादा बड़ा होगा। निर्णय नहीं लोगे, तो हो सकता है, उस पल में नुकसान हो जाए। निर्णय ले लोगे तो लगातार नुकसान को आमंत्रण दे दोगे।
अब जैसे कि कोई है जो नहीं जानता कि उसको इंजीनियरिंग करनी चाहिये या नहीं। उसके लिए बहुत बेहतर है कि वो थोड़ा ठहर जाए। एक बार उसने निर्णय ले लिया और लाखों की फीस जमा करा दी, तो अब वो चार साल और फिर दो साल और फिर पूरी ज़िन्दगी एक ही रास्ते पर चलते रहने का मुआवज़ा भरेगा। क्या ये बेहतर न होता कि वो एक साल के लिए रुक जाता? क्या ये बेहतर न होता कि अब जो उसने चालीस साल का अपना जीवन, एक रास्ते पर निर्धारित कर दिया, एक निर्णय ले करके, की कहीं अंतिम तारीख न बीत जाए। कॉलेज में आवेदन की अंतिम तिथि यही है। तो निर्णय ले लो, नहीं तो तारीख निकल जाएगी। यही होता है ना? जल्दी से निर्णय लो नहीं तो आवेदन करने की तिथि बीत जाएगी।
और अगर आवेदन कर दिया तो क्या होगा, ये नहीं समझ रहे हो? आवेदन कर दिया, तो पहले साल लाख की फीस जमा कराओगे? और फिर बोलोगे अब तो जमा हो गयी। अब तो पैसे फंसे हुए हैं। फिर दूसरे साल की कराओगे। और चार साल की फीस और चार साल की ज़िंदगी, गयी। और जब एक बार तुमने चार साल की ज़िंदगी उसमें लगा दी, तो फिर अब, पूरी ज़िंदगी क्यों?
“यार, चार साल इंजीनियरिंग किया है ना, अब मैं कुछ और थोड़े ही कर सकता हूँ।”
तुम देख नहीं रहे हो कि नुकसान किधर ज़्यादा है? क्या तुम इतने समझदार नहीं हो? और समझदारी से यहाँ पर, मेरे लिए डिफरेंशियल इक्वेशन लगाना नहीं है।
समझदारी से मतलब है, साफ़ साफ़ देखना — सरल और सीधा देखना।
और ऐसा होता है ना, जल्दी से निर्णय तो ले ही लेना है क्योंकि रुकना तो हमारी?