तुम्हारा दुश्मन तुम्हारे भीतर बैठ शासन कर रहा है
प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। कल आपने अनुशासन के बारे में कहते हुए 'शासन' शब्द को अलग करके उसके विषय में भी बताया था। आपने कहा था कि, "व्यक्ति वास्तव में जान जाए कि कौन है, जो सच्चा है और उसमें शासित हो जाए।"
मैं जब अपना जीवन देखता हूँ तो पाता हूँ कि मैं सारी ग़लत धारणाओं और शिक्षाओं में ही शासित हो रहा हूँ। और वो जो मुझे उनमें शासित होने के लिए मजबूर करते हैं उनका अपना एक बल है, उनकी अपनी एक धारा है। आपके पास आने से मेरा अनुभव तो होता है कि हाँ, आप सही हैं और जो सीखने को मिल रहा है वो सच है। पर उसमें शासित होने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूँ।…