तीन रास्ते और हज़ार योनियाँ

आचार्य प्रशांत: एक मार्ग है झूठे सच का। झूठे सच का मार्ग; इसको तमसा का मार्ग भी कह सकते हैं। तमसा क्या है? झूठा सच। झूठा सच कैसे? आपने अपने आपको आश्वस्त कर लिया है कि जो है यही सच है। आपने अपने-आपको आश्वस्त कर लिया है कि जो कुछ आख़िरी है वो आपको मिल ही गया है। आप आत्मविश्वास से भरपूर हैं। आपने अपने-आपको एक छद्म संतुष्टि दे दी है। आपने अपने-आपको एक प्रमाण पत्र दे दिया है कि आपकी ज़िंदगी में और संसार में लगभग सब कुछ ठीक ही है। यह एक मार्ग है।

दूसरा मार्ग क्या है? वो राजसिक्ता का मार्ग है। इस मार्ग को आप कह सकते हैं झूठे झूठ का मार्ग। झूठे झूठ का मार्ग क्यों है? क्योंकि इसमें आपको यह तो दिख रहा है कि आप झूठ में हैं, आप अपने झूठ को सच नहीं बोल पा रहे। तो आपको अपनी स्थिति को बदलने की, कुछ और बेहतर पाने की ज़रूरत अनुभव हो रही है। स्वीकार भी कर रहे हैं कि भाई चीज़ें बदलनी चाहिए। “कुछ और करते हैं न। अभी जो कुछ है उसमें मज़ा नहीं आ रहा, बेचैनी सी रहती है।” लेकिन आप एक झूठ से उछलकर के बस दूसरे झूठ पर जा बैठते हैं। दूसरा झूठ जैसे आपको प्रलोभित करता हो सच बन कर के। झूठ से झूठ पर आप जाते हैं।

ना तो आप यह कह पा रहे कि झूठ ही सच है जैसे तामसिक व्यक्ति कह देता है। क्या कह देता है वो? कि, “मेरा तो झूठ ही सच है।” ना तो आप यह कह पा रहे कि आपका झूठ सच है, ना जो सच है वो आपकी नज़र में कहीं दूर-दूर तक है। तो आपके जीवन में कुल क्या है? झूठ ही झूठ। तो मैं कह रहा हूँ कि ये जो दूसरा मार्ग है ये झूठे झूठ का है। इसमें तो झूठा सच भी मौजूद नहीं है। इसमें तो सच्चा झूठ भी मौजूद नहीं है। कुछ भी नहीं है।…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org